मोदी जी और ग़रीबी में सम्बन्ध ✍ गुरु बलवन्त गुरुने⛩

© बहुत मित्र आज कल मोदी जी पर दोष मढ़ने में या उन के निरर्थक बचाव में लगे हुए हैं। दोनों ही कहीं न कहीं राजनितिक  जुआरियों के पत्तों का रोल मात्र ही निभा रहे हैं, अन्यथा कुछ नहीं।

कुछ लोग मोदी जी के एक ग़रीब परिवार में जन्म लेने को उन के हक़्क़ में प्रसार प्रचार का मरकज़ बना रहे हैं, तो कुछ लोग इस ही मुद्दे को उन पर व्यंग बाण कसने के लिए एक कमान की भांती प्रयोग कर रहे हैं।

आज सोचा की मोदी जी के साथ बेवजह जोड़े जा रहे इन बेमानी तथ्यों को कसौटी पे परखा जाये।

 बेमानी इस लिए की आज इस का कोई मतलब नहीं रह जाता कि मोदी किसी गरीब परिवार में जन्मे या फिर किसी राजघराने में, क्यों की आज का सत्य बस इतना है की वह देश के सर्वोच्च राजनितिक स्थान पर विराजमान हैं। तथ्य इस लिये की यह भी झुठलाया नहीँ जा सकता की मोदी जी  किसी अमीर या कुलीन घराने से जन्म जात सम्बंधित नहीं हैं, बल्कि एक सामान्य से परिवार से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे की हम में से ज्यादातर लोग। यह अलग बात है कि आज राजा महाराज, मोदी के एक इशारे पर  अस्त व्यस्त या ध्वस्त तक किये जा सकते हैं।

सच कहूँ तो आज, न तो मोदी जी गरीब हैं, और न ही उन का गरीबी से कोई दूर दराज़ का भी सम्बन्ध है। लोग कहते हैं मोदी गरीब होने का नाटक करते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मोदी जी ग़रीब होने का नाटक भी करते हैं। वह अच्छा खाते हैं, अच्छा पहनते हैं, और शरेआम एक शानदार ज़िन्दगी जीते हैं।

यह अलग बात है की कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए और कुछ लोग व्यर्थ में केवल उन्हें छोटा दिखाने की चेष्टा करते हुए, उन्हें कभी चायवाला, तो कभी ग़रीब परिवार से सम्बंधित  सिद्ध करने में लगे हुए हैं।

 किसी का ग़रीब परिवार में जन्म लेना कोई बुराई नहीं, और न ही यह इस बात को निश्चित करता है की वह सारी उम्र दीनहीन ही बना रहे, यह तर्क केवल मिथ्याचिंतन और मिथ्या अहसास पैदा करने की चेष्ठा मात्र ही है, अन्यथा कुछ नहीं।

प्रतिभावान व्यक्ति, कैसे भी हालात में पैदा हों, वह कुछ भी बन सकता है, जो भी वह बनना चाहे।  मूर्खों के घर विद्वान और ग़ुलामों के घर सुलतान पैदा होते आए हैं और होते रहें गे।

 प्रतिभा वह देवी है जो इंसान को फर्श से अर्श पे बैठा देती है। बस फर्क पड़ता है तो इंसान की चाह का। कुछ लोग सन्यासी होना चुनते हैं, कुछ राजा होना, कुछ व्यपारी, तो कुछ बागी।  प्रतिभा और लगन, उन्हें अपने चुने हुए मार्ग पर अवश्य कामयाब करती है।

 धीरू भाई अम्बानी,  महर्षि बाल्मीक, बाबा साहेब अम्बेदकर,  कबीर साहिब, सिकन्दर, यह सभी प्रतिभा के धनी थे, और उन की जीवन गाथाएं मेरे इस मूल सिद्धान्त को सिद्ध करती हैं।  इन सब की प्रतिभाएं हालां की अलग अलग थीं।।

मोदी भी अवश्य ही प्रतिभा के धनी हैं । अब कुछ लोग उन्हें जुमलेबाज़ कहते हैं, तो भाई यही सही, जिस देश में जो  बिके गा, वही बेचा जाये गा।

 आदरणीय श्रीमती इंदिरा जी  का नारा, ' गरीबी हटाओ' भी तो आखिरकार एक जुमला ही था। इस ही प्रकार समाजवाद के नाम पर राजनितिक सत्ता का जुआ जीतने वाले मुलायम सिंह जी, और लालू प्रसाद यादव जी भी तो समाजवाद की जुमलेबाजी ही करते हैं, यानी मुख़ौटा समाजवाद का, नारा समाजवाद का लेकिन काम और सेवा अपनी और निजी परिवार की। सुश्री मायावती जी भी तो दलित उत्तथान के नारे का सहारा ले कर अत्ती धनाढ्य हुईं।

 यानि राजनितिक कोयले की दलाली में कोई नहीं कह सकता की मेरी चादर बेदाग़ है, यहां वस्त्र ही नहीँ, सभी के मुंह पर भी झूठ, फ़रेब और छल की कालिख पुत्ती है।

चलें पुन्ह मोदी जी की बात करते हैं।
जो व्यक्ति, पिछले कई दशकों से राजनितिक जीवन से जुड़ा रहा है, सन्घ का मशहूर प्रचारक रहा है, दशकों पहले भाजपा का हिमाचल प्रदेश का प्रसार और डेवेलपमेंट का मुखिया रहा है, और भी कितने ही महत्वपूर्ण पदों पे रहा है, लगातार 3 बार गुजरात का मुख्यमंत्री रहा है, आज देश का प्रधान मंत्री है, देश के सब से ताकतवर राजनेता के तौर पे स्थापित है,  और न जाने कितने बड़े व्यपारिक घराने के लोग जिस का पानी भरते हैं,  ऐसा इंसान अवश्य ही कोई प्रतिभवान व्यक्ति ही हो सकता है।

अब यदी हम में से किसी को भी मोदी जी से शिकायत है, जो हो सकता है आप को भी  हो, और कुछ अन्य लोगो को भी हो, तो उन्हें मोदी जी पे नहीं, देश की व्यवस्था पे ऊँगली उठानी चाहिए।।

 मोदी नाम का फ़िनामिना  इस व्यवस्था में ही पनपा और फ्ला-फूला है।  अगर धर्म की, जात पात की, आपसी द्वेष की राजनीती की जगह पिछले 70 साल से देश में सच्चे विकास की बात की जाती तो आज जिस विकास के जन्म न लेने पे एक राष्ट्रिय विलाप सा चल रहा है, वही विकास खुद 50 साल का होता, और शायद  सर्वमंगल और सर्वसुख नामक दो बेटों का बाप भी होता।

यह व्यवस्था कोई 2 या 3 साल में नहीँ पनपी है।  इस व्यवस्था के पनपने के लिए वह सभी लोग जिम्मेवार हैं जो पिछले 70 साल से इस व्यवस्था द्वारा देश का दोहन करते आ रहे हैं। इस का यह अर्थ हरगिज़ नहीं की मौजूदा सत्ताधारियों को यह वहम हो जाये कि इस बहाने वह बच गये। यदि पिछले 4 वर्षों में बातें , वायदे, निरर्थक उठा-पठक ज्यादा और सार्थक परिवर्तन कम हुआ है, तो उस की सीधी ज़िम्मेदारी मौजूद सरकार की ही बनती है।

सच कहूँ तो देश आज़ादी के बाद से ही भृष्ट नेताओं की ग्रिफ्त में रहा है। यही देश की त्रासदी है, और फ़िलहाल यकलख्त कुछ बदलने वाला नहीं है। वयक्ति विशेष को नहीं, भारत को व्यवस्था परिवर्तन और सोच में बदलाव की दरकार है। ग़रीब होना कोई  सद्गुण भी नहीं और अवगुण भी नहीं,  और अमीर होना भी,  न कोई बड़ी कामयाबी है और न ही कोई पाप।

हमें देश के प्रति अपनी भक्ति भावना को, ग़रीबी, अमीरी, जात-पात और निरर्थक  धार्मिक श्रद्धा से अलग हट कर केवल देश कल्याण और समाज कल्याण की रोशनी में देखना हो गा।।
📿तत्त सत्त श्री अकाल ⛩
⚔गुरु बलवन्त गुरुने ⚔

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