मंगोलों और ख़िलजी में सम्बन्ध @ ✒गुरु बलवन्त गुरुने⚔

कौन थे मंगोल, क्या था मंगोलों और ख़िलजी में सम्बन्ध@ ✒गुरु बलवन्त गुरुने⚔

©मंगोल, एक ऐसा नाम, जिस से किसी ज़माने में, क्या राजा और क्या आम जन, ऐसे घबराते थे जैसे की किसी प्लेग की बीमारी से, या किसान किसी टिड्डी दल के आक्रमण से घबराते हैं।

आख़िर ऐसा क्या था मंगोलों में।  सच्च कहूँ तो तीन चीज़ें थी, एक रफ़्तार, दूसरा ह्रदय व्हीनता, और तीसरा किसी ज़मीन पर काबिज़ होने की लालसा की जगह केवल लूट की भयंकर पिपासा।

यह कबाइली घुड़सवार योद्धा बड़ी रफ़्तार से अपने निश्चित निशाने पर हमला बोलते, जो भी लूटना चाहते लूट लेते, और उपरांत उस के बहुत निर्दयता से सभी बकाया जीवित इंसानों को, बच्चों को, बूढ़ों को, बीमारों को, यहां तक की कुत्ते बिल्लियों तक को भी मौत के घाट उतार देते।

इन की निर्ममता इतने पर ही समाप्त न होती, बल्कि यह सभी पुस्तकालयों, धर्म स्थलों और गोदामों को, महलों और घरों को, झोंपड़ियों और खेतों को आग लगा देते, और आलम यह होता की कम से कम एक सदी तक निर्दयी मंगोलों की विनाश लीला के निशान, इन द्वारा बर्बाद किये हुए स्थानों पर दिखते रहते।

मैं यहाँ ही स्पष्ट कर दूँ की माँगोलों को मुसलमान कहना या समझना एक बहुत बड़ी गलती है। इन का इस्लाम से पहले पहल दूर दूर का भी सम्बन्ध नहीं था।
यह लोग कुछ-कुछ बुद्ध धर्म, कुदरत परस्ती, रूह परस्ती और कबाइली धर्म और टेंगरिज़्म के अनुयायी थे। 

ख़ान शब्द इन के साथ इस लिए नहीं जुड़ा की यह मुसलमान थे बल्कि ख़ान का मतलब होता है राजा, और खन्नात किसी खान के राज्य को कहते हैं।
यह अलग बात है की बाद में मंगोलों ने इस्लाम धर्म से प्रेरित हो कर इस का अनुग्रह कर लिया, लेकिन याद रहे, कि 1200 के दशकों में  बग़दाद की सल्तनत, और बाकी इस्लामिक इलाकों को पूरी तरहं बर्बाद करने वाले मंगोल ही थे।

यहां तक की इस्लामी सभ्यता के सुनहरे युग का अंत मंगोल तीरों और तलवारों और इन ही की घोड़ों की टापों ने किया।

आइये अब मंगोल वंश के बारे कुछ जान लें।
मंगोल कबीले तो पहले से ही कायम थे, लेकिन मंगोल राज्यवंश की स्थापना 1206 में तब हुई, जब मंगोल कबीलों के कई सरदारों ने 44 वर्षीय तैमूजिन को अपना मुख्य मुखिया चुना, और उसे चंगेज़ ख़ान की उपाधी दे दी।

चगेज़ का अर्थ है, महान बलशाली बलवन्त, और ख़ान का अर्थ है राजा।  तेमुजिन अब मंगोलों का महान बलशाली राजा घोषित हो गया।

भारतीय उप महादीप और  परसिया, चीन, रूस, सभी को इन्होंने  निशाने पे लिया, और किसी भी धार्मिक भेद भाव के बिना, या मज़ाक में कहें तो एकदम सेकुलर दृष्टि से जिधर भी देखा, लूट और तबाही मचा दी।

यानी मंगोल किसी पर धार्मिक भावनाओं को मुख्य रख कर नहीं, बल्कि इक विशाल लूट को मुख्य रखते हुए आक्रमण करते थे। इन्हें आप मेगा-लुटेरे कह सकते हैं, जो घरों को नहीं, बल्कि पूरे के पूरे शहरों और राज्यों को लूटा करते थे, जैसे की आज के कुछ मल्टी नेशनलनल व्यपारी।

विजय माल्या नवयुग के मंगोलों की एक अच्छी उदाहरण है, जो 9000 करोड़ ₹ की लूट कर के लन्दन में बैठा है, जब की भारत सरकार हाथ पे हाथ धरे बैठी है। अडानी अम्बानी भी आज के मंगोल हैं, जो लाखों करोड़ों रूपये का लोन ले कर सरकार द्वारा माफ़ करवा लेते हैं।

चलिये बात को फ़िर मंगोलों की तरफ़ ले जाएँ।
चगेज़ खान के मंगोल ख़ानेह-खानाह बनने के बाद मंगोलों ने बड़े स्तर पे अपनी जंगी करवाई बढ़ा दी।

मंगोलों की नीती स्पष्ट थी, वह किसी भी राज्य पे हमला करने से पहले उसे घेर लेते, और एक भारी हरजानां माँगते। इस हरजानें में शामिल होते, फ़ौज में भर्ती करने के लिए सेहतमंद युवा, हरम के लिए खूबसूरत स्त्रियां, हीरे मोती, सोना चांदी, हथियार, बर्तन, बहुत सा धन व घोड़े। यदि कोई शाशक यह सब पेश कर देता, तो मंगोल अगली मंजिल का रुख करते, अन्यथा उस शहर या राज्य का नामों निशान ही मिटा देते।

हालां की चंगेज़ खान के बाद मंगोलों ने अपने दहशत शुदा इलाक़ों पे अपना अपना सम्राज्य भी कायम किया,  और फिर केवल लूट नहीँ, बल्की अपने सम्राज्य की स्थापना भी शुरू कर दी।

चगेज़ ख़ान के बाद उस के पुत्रों और पौत्रों तक पहुंचते पहुंचते,  साल 1227  तक मंगोल सम्राज्य विश्व का सब से बड़ा सम्राज्य बन चुका था। यह रूस और चीन से ले कर  अरब सागर तक, यानी इराक़, मध्य एशिया, सीरिया, अफगानिस्तान, कश्मीर, और उधर पूर्वी यूरोप, यानि तुर्की , हंगरी, तथा पोलैंड तक फैल चुका था।

चंगेज़ की मृत्यु के बाद मंगोल सम्राज्य चार हिस्सों में विभजित हुआ, और यहां से शुरू हुआ चार अलग मंगोल वंशों का इतिहास।

चीन पर युआन मंगोल वंश का वह राज्यवँश स्थापित हुआ, जिस वंश में आगे चंगेज़ के पौत्र कुबला ख़ान का नाम मशहूर हुआ।

  रूस पे सुनहरे मंगोलों का, यानि चंगेज़ के ही पौत्र बाटू, या भाँतु ख़ान का सम्राज्य कायम हुआ।

मध्य एशिया और उज़्बेकिस्तान के इलाकों पर चुगताई वंश, यानि चुगताई ख़ान का राज्य स्थापित हुआ और पूर्वी यूरोप और अन्य यूरेशिआई इलाक़ों पर ह्लागु/हल्लागु या हलाकू ख़ान का राज्य स्थापित हुआ।
ह्लागु खान ही को, भारत में, हलाकू के नाम से जाना गया, जिस ने भारत पर कई हमले किये।

जलालुदीन ख़िलजी को हलाकू ने शर्मनाक हार दिखाई लेकिन उस के बाद अल्लाउदीन ख़िलजी ने हलाकू की और चुग़ताई मंगोल सेनाओं को एक बार नहीं, बल्कि बारमबार, छह बार नाकों चने चबवाये, हालां की खिल्जियों और मंगोलों की जंग में अलाउदीन का महान कप्तान, जनरल जफ़र ख़ान शहीद भी हुआ।

कुल मिला कर कहें तो सन् 1200  से ले कर चौदवीं  सदी के अंत तक यूरेशिया पर मंगोलों का बर्चस्व कायम रहा।

मंगोल विश्व के सब से बड़े सामूहिक कातिलों में से एक रहे हैं।  चगेज़ ख़ान के फारस के हमले के दौरान उर्घेच में 10 लाख, माँर्व में सात लाख, निशापुर में दस लाख सत्तर हज़ार, रे नामक शहर में पांच लाख लोगों को कत्ल कर दिया गया। 

हलाकू ख़ान के अपने इतिहास कारों के अनुसार उस ने दो लाख से ज्यादा आम शहरियों का कत्ल किया, और इस ख़ान नेँ अकेले ही इस्लामी सभ्यता को जड़ से उखाड़ डाला।  इतिहासकारों की माने  तो जो भी मंगोलों की तलवार के सामने आया, कत्ल कर दिया गया।

उधर सुनहरे मंगोल वँश के ख़ान, बट्टू ख़ान ने 1238 से 1240 तक रूस में ऐसी तबाही मचाई की रूसी सभ्यता कम से कम 300 साल पिछड़ गई। उस ने कीव और रीज़ान जैसे शहरों के सभी नागरिकोँ को मार डाला, और तक़रीबन अपने 200 साल के राज्य मैं रूस की किसानी और हस्तशिल्प उद्योग को बर्बाद कर के रूस कोे काले युग में धकेल दिया।

इधर ह्लागु ख़ान या हलाकू ने और चुगताई मुग़ल  वँश के दुवा खान ने भारत पर कई बार हल्ला बोला। जलालुदीन ख़िलजी को हलाकू नेँ शर्मनाक हार दी, उस की औरतों और खज़ाने को लूटा, लेकिन उपरांत अल्लाउदीन ख़िलजी से हलाकू की फौजें और चुगताई मुग़लों की फौजें, हर बार मार खा कर ही लौटीं।

कुल मिला कर अल्लाउदीन ख़िलजी के चलते मंगोल भारत पे अपना सम्राज्य नहीं स्थापित कर सके, लेकिन बाद में बाबर ने लोधी शाशकों द्वार शाषित दिल्ली पे कब्ज़ा कर लिया, और इस तरहं भारत में, मुग़ल वँश की नीव डली, जो  मंगोलों के वंशज ही थे।
मंगोल अपने समय के सुपर पॉवर थे, भारत पर उन्हों ने कई आक्रमण किये, जो सुल्तान अल्लाउदीन ख़िलजी ने विफ़ल कर डाले।

निश्चित ही यह सभी इतिहासकार मानते हैं की मंगोल अपने समय के सब से विधवंसक आक्रमणकर्ता थे  जिन्हें मौत और विनाश की भारी भरकम मशीन कहना गलत न होगा।

हिन्दोस्तान की लाखों साल पुरानी सभ्यता को मंगोलों के कहर से बचाने का काम  ख़िलजी ने किया, जिस ने मंगोलों को हर बार एक ज़बरदस्त टक्कर दी और जंग के मैदान में नाकों चने चबवाये।

अल्लाउदीन ख़िलजी अपने समय का एक अत्यंत बेहतरीन फ़ौजी कमांडर था, जिस ने एक अत्ती उत्तम किस्म की प्रिशिक्षित व अनुशाषित फ़ौज की व्यवस्था और सञ्चालन किया। फ़ौजी इतिहासकारों की नज़र में मंगोल अतयन्त ह्रदय विहीन लुटेरे थे जब की ख़िलजी एक अव्व्ल दर्जे का योद्धा व् सेनापती।
🚩तत्त सत्त श्री अकाल🚩
✒गुरु बलवन्त गुरुने⚔⚔

No comments:

Post a Comment